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________________ 239. अन्तर्मन छंदं से पडिलेहए। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 991] - दशवकालिक 5/52 व्यक्ति के अन्तर्मन को परखना चाहिए। 240. त्रिधा भिक्षा त्रिधा भिक्षाऽपि तत्राद्या, सर्वसंपत्करी मता । द्वितीया पौरूषजी स्याद्, वृत्ति भिक्षा तथान्तिमा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1006] - हितोपदेश 220 भिक्षा तीन प्रकार की होती हैं - (१) सर्वसंपत्करीभिक्षा-साधु को निर्दोष वस्तु देना । (२) पौरुषघ्नी भिक्षा - साधु को सदोष वस्तु देना और (३) वृत्ति भिक्षा – अन्धे, बहरे आदि को कुछ देना । 241. दुर्लभ अंग चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणिह जंतुणो । माणुसत्तं सुई सद्धा, संजमम्मि य वीरियं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1051-1052] - उत्तराध्ययन 30 इस संसार में प्राणियों के लिए चार परम अंग (उत्तम संयोग) अत्यन्त दुर्लभ हैं – १. मनुष्यत्व २. धर्म-श्रवण ३. सम्यक् श्रद्धा और ४. संयम में पुरुषार्थ । 242. कर्मवाद समावन्नाण संसारे, नाणा गोत्तासु जाइसु । कम्मा नाणा विहाकटु, पुढो विस्संभिया पया ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1051] - उत्तराध्ययन 32 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 115
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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