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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 393]
- आचारांग - 12/5/89 आहार प्राप्त होने पर मुनि आगम के अनुसार उस भोजन का परिमाण जाने अर्थात् जितना आवश्यक हो उतना ही ग्रहण करें । 112 द्विविध बन्धन दुहाओ छित्ता नेयाइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 393] - आचारांग - 10/5/88
एवं 188 भिक्षु राग-द्वेष दोनों बन्धनों को छेदकर नियमित जीवन जीता है । 113 आरम्भ-निवृत्ति आरंभा विरमेज्ज सुव्वते ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 398]
- सूत्रकृतांग - 1203 सुव्रती आरम्भ के कार्यों से दूर रहे । 114 उद्बोधन णो सुलभा सुगई वि पेच्चओ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 398]
- सूत्रकृतांग - 1243 मरने के बाद जीव को सद्गति आसानी से प्राप्त नहीं होती। (अत: जो कुछ सत्कर्म करना है यहीं करो ।) 115 आलम्बन
सालंबणो पडतो, अप्पाणं दुग्गमेऽवि धारेइ । इय सालंबण सेवा, धारेइ जई असढभावं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 421] - आवश्यक नियुक्ति - 3/1186
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 85