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किसी आलम्बन के सहारे दुर्गम गर्त आदि में नीचे उतरता हुआ व्यक्ति अपने को सुरक्षित रख सकता है । इसीतरह ज्ञानादिवर्धक किसी विशिष्ट हेतु का आलम्बन लेकर अपवाद मार्ग में उतरता हुआ सरलात्मा साधक भी अपने को दोष से बचाए रख सकता है ।
116 विशिष्ट - ज्ञान
सालंबसेवी समुवेति मोक्खं ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 421] एवं [ भाग-7 पृ. 778] व्यवहारभाष्य पीठिका - 184
जो साधक किसी विशिष्ट ज्ञानादि हेतु से अपवाद ( निषिद्ध) का आचरण करता है वह भी मोक्ष प्राप्त करने का अधिकारी है । 117 यथार्थ - आत्मलोचन
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जह बालो जंपतो कज्जमकज्जं व उज्जुयं भणइ । तं तह आलोएज्जा मायामय विप्पमुक्को उ ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 428-431] ओघनियुक्ति - 801
बालक जो भी उचित या अनुचित कार्य कर लेता है, वह सब सरल भाव से कह देता है इसीप्रकार साधक को भी गुरुजनों के समक्ष दंभ और अभिमान से रहित होकर यथार्थ आत्मालोचन करना चाहिए ।
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118 कर्मभार- मुक्ति
उद्धरियं सव्व सल्लो आलोइय निंदिओ गुरु सगासे । होड़ अतिरेग लहुओ, ओहरिय भरोव्व ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 432] ओघनियुक्ति - 806
जो साधक गुरूजनों के समक्ष मन के समस्त शल्यों (काँटों) को निकाल कर आलोचना, निन्दा (आत्म-निंदा ) करता है, उसकी आत्मा उसीप्रकार हल्की हो जाती है जैसे- सिर का भार उतार देने पर भारवाहक ।
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 86