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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 392]
- भगवती 1/10 (2) आत्म-साधना में अप्रमत्त रहनेवाले साधक, न अपनी हिंसा करते हैं, न दूसरों की; वे सर्वथा - अहिंसक रहते हैं । 107 शोक नहीं V अलाभोत्ति न सोएज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 393]
- आचारांग 12/5/89 (इष्ट वस्तु का) लाभ न होने पर शोक नहीं करें । 108 संग्रह-वृत्ति-त्याग बहुंपि लद्धं ण णिहे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 393]
- आचारांग - 12/5/89 अधिक मिलने पर भी संग्रह न करें । 109 आहार की अनासक्ति V लाभोत्ति ण मज्जेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 393]
- आचारांग 12/5/89 (इष्ट वस्तु का) लाभ होने पर अहंकार न करें । 110 परिग्रह से दूर परिग्गहाओ अप्पाणं अवसक्केज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 393]
एवं [भाग-4 पृ. 2737]
- आचारांग - 1/2/5/89 साधक परिग्रह से अपने आपको दूर रखें । 111 मुनि का आहार
लद्धे आहारे अणगारे मातं जाणेज्जा ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 84