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- गच्छाचार पयना - ४ आचार्य भ. गच्छ के प्रमुख परिवाहक (स्तम्भरूप परिचालक) हैं और निश्छिद्रवाहन हैं। अत: चहुमुखी दृष्टि से आचार्यश्री का निरीक्षण करते रहो, साधते रहो, समझते रहो और मानते रहो व सूझबूझ से देखते रहो। 9 जिणवाणी-सार / अंगाणं किं सारो ? आयारो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 372 ]
- आचारांग नियुक्ति - 16 जिणवाणी (अंग-साहित्य) का सार क्या है ? 'आचार' सार है। 100 आचरण से निर्वाण सारो परूवणाए चरणं तस्स विय होइ निव्वाणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 372 ]
- आचारांग नियुक्ति - 17 प्ररूपणा का सार है-आचरण । आचरण का सार (अन्तिमफल) है - निर्वाण। 101 स्वाध्याय तप - निर्मल सज्झाय सज्झाणरयस्स ताइणो, अपाव भावस्स तवेरयस्स । विसुज्झइ जं से मलं पुरे कडं, समीरियं रूप्पमलं व जोइणा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 387 ]
- दशवैकालिक - 8/8 जैसे अग्नि द्वारा तपाए हुए सोने-चाँदी का मैल दूर हो जाता है वैसे ही स्वाध्याय-सद्ध्यान में लीन, षट्काय रक्षक, शुद्ध अन्त:करण एवं तपश्चर्या में रत साधु का पूर्व संचित कर्म-मैल नष्ट हो जाता है । 102 त्रस-हिंसा निषेध तसे पाणे न हिंसेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 387 ] - दशवकालिक - 8/12
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 82