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- गच्छाचारपयन्ना - 1/23 जो आचार्य शिष्य समूह को विधिपूर्वक सारणा, वारणा, चोयणा आदि में प्रेरित करते हैं तथा सूत्र और अर्थ का अध्यापन करवाते हैं; वे ही आचार्य धन्य, पवित्र, बन्धु के समान और मुक्तिदायक हैं। 8 पुरः स्पर्शी पारदर्शी
स एव भव्वसत्ताणं, चक्खुभूए वियाहिए । दंसेइ जो जिणुद्दि, अणुटाणं जहाट्ठियं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 35 ]
- गच्छाचार पयन्ना - 1/26 जो आचार्य भगवन्त तीर्थंकर परमात्मा द्वारा प्रकाशित सम्यग् दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूपी रत्नत्रयी यथास्थित दर्शाते हैं, वे ही आचार्य भव्य प्राणिओं के लिए चक्षु के समान कहे गए हैं। 4 आचार्य गोपाल तुल्य
आचार्यस्यैव तत् जाड्यं, यच्छिष्यो नावबुध्यते । गावो गोपालकेनैव कुतीर्थे नावतारिताः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 337 ]
- आवश्यकमलयगिरि - 14 यदि शिष्य को ज्ञान नहीं होता तो वह आचार्य की ही जड़ता है, क्योंकि गायों को कुघाट में उतारने वाला वस्तुत: गोपाल ही है। 5 शत्रु-गुरु
संगहोवग्गहं विहिणा न करेइ य जो गणी । समणं समणिं तु दिक्खित्ता समायारि न गाहए ॥ बालाणं जो उ सेसाणं, जीहाए उवलिंपए । तं सम्ममग्गं गाहेइ, सो सूरी जाण वेरिओ ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 337 ] - गच्छाचार पयन्ना - 15/16
अभिधान राजेन्द्र में सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 80