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8 युक्ति युक्त ग्राह्य
पक्षपातो न मे वीरे, न द्वेषः कपिलादिषु । युक्तिमद् वचनं यस्य, तस्य कार्यः परिग्रहः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 278 ] . - लोकतत्त्वनिर्णय - 38
न तो मुझे महावीर का पक्षपात है और न कपिल आदि मतों से द्वेष है । जिसका वचन युक्ति सङ्गत है उसीके वचन को स्वीकार करना चाहिए। 90 मति-श्रुत अन्योन्याश्रित
जत्थ आभिणिबोहियणाणं, तत्थ सुयनाणं । जत्थ सुअनाणं, तत्थाऽऽभिणिबोहियं णाणं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 279 ]
- नंदीसूत्र सवृत्ति 4 जहाँ पर आभिनिबोधिक (मतिज्ञान) होता है वहाँ श्रुतज्ञान अवश्य होता है, यह नियम नहीं है; किन्तु जहाँ श्रुतज्ञान होता है उससे पहले मतिज्ञान अवश्य होता है। 91 निःसार संयमी
कुल गाम नगररज्जं, पयहियं जो तेसुकुणइ हुममत्तं । सोनवरिलिंगधारी,संजम जोएण निस्सारो॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 334 ]
- गच्छाचार पयन्ना - 1/24 _____ जो कुल = घर, गाँव, नगर और राज्यादि शाहीठाठ छोड़कर पुन: उसके प्रति ममत्त्व भाव या आसक्ति रखते हैं, तो वे आचार्य संयम भाव से शून्य हैं, रिक्त हैं, मात्र वेशधारी ही आचार्य हैं। 92 आचार्य भ.-उत्तरदायित्त्व
विहिणा जो उ चोएइ, सुत्तं अत्थं च गाहई । सो धन्नो सो अ पुण्णो अ, स बंधू मुक्खदायगो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 334 ]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 79