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74 सुरक्षितात्मा सुरक्खिओ सव्व दुहाण मुच्चइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 231]
- दशवकालिक चूलिका - 246 सुरक्षित आत्मा सब दु:खों से मुक्त हो जाती है । 75 पाप से बचाव
अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो । ___ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 231]
- दशवैकालिक चूलिका - 246 अपनी आत्मा को सतत पापों से बचाए रखना चाहिए। 76 निश्चय-रत्नत्रय
आया हु महं नाणे, आया मे दंसणे चरिते य । आया पच्चक्खाणे, आया मे संजमे जोगे ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 231]
- आतुरत्याख्यान - 25 आत्मा ही मेरा ज्ञान है। आत्मा ही दर्शन और चारित्र है । आत्मा ही प्रत्याख्यान है और आत्मा ही संयम और योग है अर्थात् ये सब आत्म रूप ही है। 77 विवेक दुर्लभ
देहात्माद्यविवेकोऽयं, सर्वदा सुलभो भवे । भवकोट्यादि तद्भेद, - विवेकस्त्वति दुर्लभः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 232]
- ज्ञानसार 152 देह ही आत्मा है यह अविवेक तो सुलभ है, परन्तु करोड़ों जन्मों के बावजूद भी भेदज्ञान रूपी विवेक प्राप्त होना अति दुर्लभ है ।
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 75
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