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________________ स्वरूपदृष्टि से सब आत्माएँ एक (समान) हैं । 69 समता का पारगामी एस आतावादी समियाए परियाए वियाहिते । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 223] - आचारांग - 1/5/5/171 वह आत्मवादी सत्य या समता का पारगामी होता है । 70 आत्म-प्रतीति V जेण विजाणति से आता तं पडुच्च पडिसंखाए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 223] - आचारांग - 1/5/ 571 जिससे जाना जाता है, वह आत्मा है । जानने की इस शक्ति से ही आत्मा की प्रतीति अर्थात् पहचान होती है । 71 ज्ञानात्मा णाणे पुण नियमं आया । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 223] - भगवती - 12000 नियम से ज्ञान ही आत्मा है। 72 आत्म-विज्ञाता - जे आता से विण्णाता, जे विण्णाता से आता । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 223] - आचारांग - 1/5/ 571 जो आत्मा है, वह विज्ञाता है । जो विज्ञाता है, वह आत्मा है । 73 अरक्षितात्मा अरक्खिओ जाइ पहं उवेई । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 231] - - दशवैकालिक चूलिका - 246 अरक्षित आत्मा जन्म-मरण के पथ की पथिक बनती है । ___ अभिधान राजेन्द्र में सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 74
SR No.002317
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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