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________________ 2 द्रुतगामी नइवेग समं चवलं च जीवियं, जोव्वणञ्च कुसुम समं । सोक्खं च जं अणिच्चं, तिण्णि वि तुरमाण भोज्जाइं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 178 ] - आचारांग सूत्र सटीक - InM/ जीवन सरिता के प्रवाह के समान चपल, जवानी पुष्पवत् और जो सुख है, वह अनित्य है । ये तीनों अतितेजी से बीत जानेवाले हैं। 3 उद्बोधन अणभिक्कंतं च वयं संपेहाए । C - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 179 ] - आचारांग - 120/68 हे प्रबुद्ध साधक ! जो बीत गया सो बीत गया। शेष रहे जीवन को ही ध्यान में रखकर प्राप्त अवसर को परख । 5 समय पहचानो - खणं जाणाहि पंडिए ! - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 179 ] - आचारांग -120/68 हे आत्मज्ञ ! क्षण को अर्थात् समय के मूल्य को पहचानो। 5 आत्मज्ञाता अत्ताणं जो जाणति जोय लोगं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 10 ] एवं [भाग-3 पृ. 559 ] - सूत्रकृतांग - 1/2/20 जो आत्मा को जानता है, वही लोक को जानता है । 56 तबतक गुरूसेवा गुरूत्वं स्वस्य नोदेति, शिक्षा सात्म्येन यावता । आत्म-तत्त्व प्रकाशेन, तावत्सेव्यो गुरूत्तमः ॥ अभिधान राजेन्द्र में सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 70
SR No.002317
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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