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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 33]
एवं भाग-6 पृ. 131
- आचारांग 1/8/8 संलेखनाकालीन जीवन में स्थित पंडित साधक को यदि अपने आयु-क्षेम में किञ्चित् भी विघ्न मालूम पड़े तो उसके अन्तरकाल में शीघ्र ही भक्त-परिज्ञादि का अनुष्ठान कर लेना चाहिए । 25 अतीत अनागत निश्चिन्त अवरेण पुव्वं ण सरंति एगे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 59]
- आचारांग 133M2401 कुछ साधक अतीत के भोगों की स्मृति और भविष्य के भोगों की स्मृति नहीं करते। 26 निष्काम ज्ञानी का अरइ ! के आणंदे एत्थंपि उग्गहे चरे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 60]
एवं [भाग-7 पृ. 60]
- आचारांग183424 ज्ञानी के लिए क्या अरति है, क्या आनन्द है ? वह अरति और आनन्द के इस विकल्प को ग्रहण किए बिना विचरण करें । 27 एक जाना, सब जाना एको भावः सर्वथा येन दृष्टः सर्वे भावाः सर्वथा तेन दृष्टाः। सर्वे भावाः सर्वथा येन दृष्टाः, एको भावः सर्वथा तेन दृष्टः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग-2 पृ. 79]
- स्याद्वादमंजरी प.5 जिसने एक भाव को सर्वथा समझ लिया उसीने सब भावों को सर्वथा समझा है तथा जिसने सर्व भावों को सर्वथा समझ लिया उसीने एक भाव को सर्वथा समझा है। 28 आगम-चक्षु
आगम चक्खू साहू।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 . 63
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