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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 30] एवं भाग-4 पृ. 2346 - आचारांग 1Ann3 यह जीवहिंसा अहित करनेवाली है और मिथ्यात्व का कारण है। 21 आरम्भ एस खलु गंथे एस खलु मोहे एस खलु मारे एस खलु णरए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 30] एवं [भाग-4 पृ. 234] एवं [भाग-6 पृ. 1062] - आचारांग IA244 यह आरम्भ (हिंसा) ही वस्तुत: ग्रन्थ = बन्धन है, यही मोह है, यही मार = मृत्यु है और यही नरक है । 22 मौत: एक झपाटा सेणे जह वट्टयं हरे। ___ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 32] - सूत्रकृतांग 1Ann जैसे बाज पक्षी तीतर को एक ही झपाटे में मार डालता है ठीक वैसे ही आयु क्षीण होने पर मृत्यु भी मनुष्य के प्राण हर लेती है । 23 मूढ़ मानव अट्टेसु मूढे अजरामरत्व । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 32] - सूत्रकृतांग 10008 मूढ़ स्वयं को अजर-अमर के समान मानता हुआ आर्तध्यान सम्बन्धी कार्यों में फँसा रहता है। 24 मृत्यु कला जं किंचुवक्कम जाणे आउखेमस्समप्पणो । तस्सेव अन्तरद्धाए, खिप्पं सिक्खिज्ज पंडिए । अभिधान राजेन्द्र में सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 62
SR No.002317
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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