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________________ 16 मोक्ष-पथिक से जहा वि अणगारे उज्जुकडे नियाग पडिवण्णे अमायं कुव्वमाणे वियाहिते । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 28] - आचारांग Inan9 जो सरलतादि गुणों से युक्त है, मुक्ति-पथ का राही है और जो माया का आचरण नहीं करता है, उसे ही अणगार कहा गया है । 17 अटूट श्रद्धा जाए सद्धाए णिक्खंतो तमेव अणुपालिया विजहित्ता विसोत्तियं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 28] - आचारांग 143/20 जिस श्रद्धा के साथ निष्क्रमण किया है, उसी श्रद्धा के साथ विस्रोतसिका (शंका) छोड़कर उसका अनुपालन करना चाहिए। 18 कौन वीर? पणया वीरा महावीहिं। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 29] - आचारांग 14321 वीरपुरूष महापथ के प्रति समर्पित होते हैं। 19 निर्भय साधक लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 29] एवं [भाग-7 पृ. 893] - आचारांग 13/4429 एवं 14321 जो साधक अतिशय ज्ञानी पुरूषों की आज्ञा से कषाय रूप लोक को जानकर विषयों का त्याग कर देता है, वह पूर्ण अभय (भयमुक्त) हो जाता है । 20 हिंसा अहितकारिणी तं से अहियाए तं से अबोहियाए । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 61
SR No.002317
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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