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12 पल-पल-अप्रमाद समयं गोयम ! मा पमायए। .
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 11]
- उत्तराध्ययन 10/34 एक क्षण के लिए भी प्रमाद मत करो । 13 क्षणभङ्गर जीवन
कुसग्गे जह ओसबिंदुए, थोवं चिट्ठइ लंबमाणाए । एवं मणुयाणं जीवियं, समयं गोयम मा पमायए ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 11]
एवं [भाग-4 पृ. 2569]
- उत्तराध्ययन 102 जैसे कुशा (घास) की नोंक पर हिलती हुई ओस की बूंद बहुत थोड़े समय के लिए टिक पाती है ठीक ऐसा ही मनुष्य का जीवन भी क्षणभंगुर है । अतएव हे गौतम ! क्षणभर के लिए भी प्रमाद मत कर । 14 सरलात्मा सोही उज्जुय भूयस्स ।
- अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग-2 पृ. 28]
एवं [भाग-3 पृ. 1053]
- उत्तराध्ययन 342 सरल आत्मा की विशुद्धि होती है। 15 धर्म-निवास - धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ।
- अभिधान राजेन्द्रकोष [भाग-2 पृ. 28]
एवं [भाग-3 पृ. 1053]
- उत्तराध्ययन 302 पवित्र हृदय में ही धर्म निवास करता है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 60