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सभी को जीवन प्यारा है ।
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जीवन-कामना
~ सव्वे पाणा पियाउया सुहसाता दुक्ख पडिकूला अप्पियवधा पियजीविणो जीवितुकामा ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 10] आचारांग 1/23/18
सभी प्राणियों को अपना जीवन प्यारा है। सभी सुख का आस्वाद चाहते हैं । दुःख से घबराते हैं । मृत्यु सबको अप्रिय है और जीवन प्रिय । सब जीवित रहना चाहते हैं ।
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आत्म-चिन्तन
भवकोटिभिरसुलभ, मानुष्यं प्राप्य कः प्रमादो मे । न च गतमायुर्भूयः, प्रेत्यत्यपि देवराजस्य अभिधान राजेन्द्रकोष [ भाग 2 पृ. 11] एवं [भाग 4 पृ. 2677] प्रशमरति प्रकरण
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तिर्यञ्चगति आदि में अनन्तभव बीत गए, फिर भी अत्यन्त दुर्लभ मानवजन्म को पाने के बाद भी मेरा कैसा प्रमाद है ? इन्द्र का भी बीता आयुष्य पुनः लौटकर नहीं आता तब मनुष्य की बात ही कहाँ रही ? 11 एक दिन ऐसा आयेगा
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 10] आचारांग 1/2/3/78
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जह तुब्भे तह अम्हे, तुम्हे विय होहिहा जहा अम्हे । अप्पाहेति पडतं पंडुय पत्तं किसलयाणं ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 11] अनुयोगद्वार 121-492 (4)
पीतवर्ण (पीला) पत्ता पृथ्वी पर गिरता हुआ अपने साथी हरे पत्तों से कहता है – “मेरे साथी ! आज जैसे तुम हो, एक दिन हम भी ऐसे ही थे और आज जैसे हम हैं, एकदिन तुम्हें भी ऐसा ही होना होगा ।"
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 59
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