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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 8]
एवं [भाग 6 पृ. 337]
- प्रशमरति 72 ज्ञान का फल विरति है। सर्वकल्याण का मूलः विनय विनयफलं शुश्रूषा, शुश्रूषा फलं श्रुतज्ञानं । ज्ञानस्य फलं विरति, विरति र्फलं चास्रव निरोधः ॥ संवरफलं तपोबलमथ, तपसो निर्जरा फलं दृष्टम् । तस्माक्रिया निवृत्तिः क्रिया निवृत्तेरयोगित्वम् ॥ योगनिरोधाद् भवसन्ततिक्षयः सन्ततिक्षयान्मोक्षः । तस्मात् कल्याणानां सर्वेषां भाजनं विनयः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 8]
एवं [भाग 6 पृ. 337]
- प्रशमरति प्रकरण 72-73-74 विनय का फल श्रवण, श्रवण (गुरु के समीप किया हुआ) का फल आगमज्ञान, आगमज्ञान का फल विरति (नियम), विरति का फल संवर (आस्रव निवृत्ति), संवर का फल तप: शक्ति, तप का फल निर्जरा, निर्जरा का फल क्रिया-निवृत्ति, क्रिया-निवृत्ति से योग-निरोध, योग निरोध होने से भव-परंपरा का क्षय होता है । परम्परा (जन्मादि) के क्षय से मोक्ष-प्राप्ति होती है । इसलिए सारे कल्याणों का भाजन विनय है । 7 परिग्रहजन्य दोष ण एत्थ तवो वा दमो वा णियमो वा दिस्सति ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 10]
एवं [भाग 6 पृ. 730]
- आचारांग 12307 परिग्रही पुरूष में न तप होता है, न दम (इन्द्रिय-निग्रह) होता है और न नियम ही होता है। 8 जीवन-प्रिय
सव्वेसिं जीवितं पियं ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 58