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________________ सूर्योदयास्त भ्रान्ति णा इच्चो उदेति ण अस्थमेति । - अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग-2 पृष्ठ 3] - सूत्रकृतांग सूत्र 12 वस्तुत: सूर्य न उदय होता है, न अस्त होता है । यह सब दृष्टिभ्रम है। तप का फल तपसो निर्जराफलं दृष्टम् - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 8] एवं [भाग 6 पृ. 337] - प्रशमरति 73 • तप का फल निर्जरा है। 3 विनय से अक्षयसुख विणया णाणं, णाणाउ दंसणं दंसणाहिं चरणं तु । चरणाहिं तो मोक्खो मुक्खे सुक्खं अणाबाहं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 8] एवं [भाग 6 पृ. 337] - धर्मरत्न प्रकरण 1 पृ. 21 विनय से ज्ञान, ज्ञान से दर्शन, दर्शन से चारित्र, चारित्र से मोक्ष होता है और मोक्ष से अव्याबाध सुख की प्राप्ति होती है। कल्याणपात्र तस्मात् कल्याणानां सर्वेषां भाजनं विनयः । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 8] एवं [भाग 6 पृ. 337] - प्रशमरति 74 विनय सब कल्याणों का मूल हैं । ज्ञान-फल ज्ञानस्य फलं विरतिः । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 57 )
SR No.002317
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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