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- उत्तराध्ययन 14/39 यदि यह जगत् और इस जगत् का समग्र धन भी तुम्हें दे दिया जाय, तब भी वह तुम्हारी रक्षा करने में अपर्याप्त अर्थात् असमर्थ है। 253 धर्म ही रक्षक
“एक्को हु धम्मो नरदेव ! ताणं । न विज्जए अन्नमिहेह किंचि ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1191]
- उत्तराध्ययन 14/40 राजन् ! एक धर्म ही रक्षा करनेवाला है । उसके अतिरिक्त विश्व में कोई भी मनुष्य का त्राता नहीं है । 254 मृत्यु अवश्यंभावी । / जातस्य हि ध्रुवं मृत्युः
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1192]
- भगवद्गीता - 2027 ___ यह ध्रुव सत्य है कि जन्मधारी की मृत्यु अवश्यम्भावी है । 255 दह्यमान-संसार - डज्झमाणं न बुज्झामो रागदोसग्गिणा जयं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1192]
- उत्तराध्ययन - 14/43 राग-द्वेष रूप अग्नि से जलते हुए इस संसार को देखकर भी हम नहीं समझ रहे हैं, यह आश्चर्य है । 256 चलो, संभलकर
गिद्धोवमे उ नच्चाणं कामे संसार वद्धणे । उरगो सुवण्ण पासेव्व संकमाणो तणुं चरे ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1192] - उत्तराध्ययन 14/47
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 119