SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1190] - उत्तराध्ययन 1427 जिसकी मृत्यु के साथ मित्रता हो, जो उससे कहीं भागकर बच सकता हो अथवा जो यह जानता हो कि मैं कभी मरूँगा ही नहीं, वही कल पर भरोसा कर सकता है। 249 स्थाणु साहाहिं रूक्खो लभई समाहि । छिन्नाहि साहाहिं तमेण खाणुं ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1190] - उत्तराध्ययन 14/29 वृक्ष की सुन्दरता शाखाओं से हैं । शाखाएँ कट जाने पर वही वृक्ष . ठू (स्थाणु) कहलाता है। 250 भिक्षाचर्या धीरा हु भिक्खायरियं चरंति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1191] . - उत्तराध्ययन - 14/35 धैर्यशाली ही भिक्षा-चर्या का अनुसरण करते हैं । 251 असमर्थ जुन्नो व हंसो पडिसोयगामी । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1191] - उत्तराध्ययन 14.33 वृद्ध हंस प्रतिस्रोत (जल-प्रवाह के सम्मुख) में तैरने से डूब जाता है । (असमर्थ व्यक्ति समर्थ का प्रतिरोध नहीं कर सकता ।) 252 धन-से रक्षा नहीं सव्वं जगं जइ तुहं, सव्वं वावि धण भवे । सव्वं पि ते अपज्जत्तं, नेव ताणाए तं तव ।। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1191] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 118
SR No.002317
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy