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उत्तराध्ययन 14/19
अन्दर के विकार ही वस्तुतः बन्धन के हेतु हैं ।
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244 जरा - मरण
मच्चुणाब्भाहओ लोगो, जराए परिवारिओ ।
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उत्तराध्ययन 14/23
जरा से घिरा हुआ यह संसार मृत्यु से पीड़ित हो रहा है अर्थात् यह संसार मृत्यु से पीड़ित है और वृद्धावस्था से घिरा हुआ है । 245 बीता कभी नहीं लौटा
जा जा वच्चइ रयणी ण सा पडिनियत्तई । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 1189]
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 1189]
- · उत्तराध्ययन 14/24
जो जो रात बीत रही है, वह लौटकर नहीं आती ।
246 सफल रजनी
धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जंति राइओ ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 1189] उत्तराध्ययन 14/25
धर्माचरण करनेवालों की रात्रियाँ सफल होती हैं ।
247 राग - मुक्ति कैसे ?
सद्धा खमं णे विणइत्तु रागं ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 1190]
उत्तराध्ययन 14/28
धर्मश्रद्धा राग को दूर करने में समर्थ हो सकती हैं।
248 कल का क्या भरोसा ?
जस्सऽत्थि मच्चुणा सक्खं, जस्स चsत्थि पलायणं । जो जाणइ न मरिस्सामि, सो हु कंखे सुए सिया ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस खण्ड-2 117