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239 धर्मधुरा धणेण किं धम्म धुराधिगारे ? '
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1188]
- उत्तराध्ययन 14/07 धर्म की धुरा को खींचने के लिए धन की क्या आवश्यकता है ? (वहाँ तो सदाचार की जरुरत है।) 240 संसार-हेतु V संसार हेडं च वयंति बंधं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1189]
- उत्तराध्ययन - 1419 यह बन्धन ही संसार का हेतु है । 241 निष्फल रात्रियाँ अधम्मं कुणमाणस्स अफला जंति राइओ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1189]
- उत्तराध्ययन 14/24 अधर्माचरण करनेवालों की रात्रियाँ निष्फल जा रही हैं। .. 242 नित्य क्या ?
नो इंदियग्गेज्झा अमुत्त भावा । अमुत्त भावा विय होइ निच्चो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1189]
- उत्तराध्ययन 1449 आत्मा आदि अमूर्त तत्त्व इन्द्रिय ग्राह्य नहीं होते और जो अमूर्त होते हैं, वे नित्य भी होते हैं। 243 बंध-हेतु अज्झत्थ हेडं निययऽस्स बंधो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1189]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 116