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संसार को बढ़ानेवाले काम-भागों को गिद्ध के समान जानकर उनसे वैसे ही शंकित होकर चलना चाहिए, जैसे सर्प गरुड़ के निकट डरता हुआ बहुत संभल कर चलता है। 257 काम-भोग-दुस्त्याज्य ~ काम भोगे य दुच्चए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1193]
- उत्तराध्ययन 14/49 ___काम-भोग कठिनाई से त्यागे जाते हैं । 258 उत्सर्ग-अपवाद
जावइया उस्सग्गा तावइया चेव हुँति अववाया । जावइया अववाया, उस्सग्गा तत्तिया चेव ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1195]
- बृहत्कल्पभाष्य - 322 जितने उपसर्ग (विधि-वचन) हैं उतने ही उनके अपवाद (निषेधवचन) भी हैं; और जितने अपवाद हैं उतने ही उत्सर्ग भी हैं । 259 अधिकरण-दोष अतिरेगं अहिगरणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1209]
- ओघनियुक्ति - 741 आवश्यकता से अधिक एवं अनुपयोगी उपकरण आदि रखना वास्तव में अधिकरण (दोषरूप एवं क्लेशप्रद) हैं ।
_ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 0 1200
अभिः
रसखण्ड-20 120