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जैसे जलादि शोधक द्रव्यों से मलिन वस्त्र भी शुद्ध हो जाता है वैसे आध्यात्मिक तप-साधना द्वारा आत्मा ज्ञानावरणादि अष्टविध कर्ममल से मुक्त हो जाता है। 221 अज्ञानी
सोवधिए हु लुप्पती बाले। . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1082]
- आचारांग IMA/55 अज्ञानी मनुष्य परिग्रह से अवश्य ही क्लेश का अनुभव करता है । 222 उद्दिष्टाहार निषेध अहाकडं ण से सेवे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1082]
- सूत्रकृतांग - INA/58 मुनि अपने लिए बना हुआ भोजन सेवन न करें । 223 यतना सह गमन - पंथ पेही चरे जयमाणे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1083] .
- आचारांग IN/61 साधक यतनापूर्वक जागरुक होकर रास्ते में देखते हुए चले। 224 निद्रा
णिपि णो पगामए। v - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1083]
- आचारांग - 12/68 बहुत निद्रा भी मत लो। 225 आहार मात्रा विज्ञ मातण्णे असण पाणस्स।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1083]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 112