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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1053]
- सूत्रकृतांग 1226 अपनी पुजा-प्रतिष्ठा के प्रार्थी मत बनो । 217 मोक्ष-मार्ग-समर्पित . पणया वीरा महाविहिं, सिद्धिपहं णेयाउयं धुवं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1053]
- सूत्रकृतांग - InM2I जो मुक्ति-मार्ग की ओर ले जानेवाला और ध्रुव है; वीरपुरुष उस महामार्ग के प्रति समर्पित होते हैं । 218 आत्म-निग्रह चेच्चा वित्तं च णायओ, आरंभं च सुसंवुडे चरेज्जासि ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1053]
- सूत्रकृतांग 1/24/22 . साधक धन-ज्ञातिजन एवं आरम्भ को छोड़कर आत्म-निग्रही होता हुआ विचरण करें। 219 मोह मुग्ध मोह जंति नरा असंवुडा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1053]
- सूत्रकृतांग - /24/20 इन्द्रियों के दास असंवृत मनुष्य हिताहित निर्णय के क्षणों में मोहमुग्ध हो जाता है। 220 आध्यात्मिक प्रयोगशाला : तपश्चरण
जहा खलु मइलं वत्थं, सुज्झइ उदगाइएहिं दव्वेहिं । एवं भावुवहाणे-ण सुज्झाए कम्ममट्टविहं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1076] - आचारांग नियुक्ति - 282
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 . 111