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212 ज्ञाति-स्नेह-बंधन तं च भिक्खू परिण्णाय सव्वे संगा महासवा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1051]
- सूत्रकृतांग 18203 ज्ञाति-संसर्ग को संसार का कारण समझ कर साधु उसका परित्याग करे । 213 कायर-साधक कीवा जत्थ य किस्संति, नाय संगेहिं मुच्छिया ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1051] ___ - सूत्रकृतांग 1Ann2
उपसर्ग आने पर ज्ञातिजनों के स्नेह-सम्बन्ध में आसक्त हुए निर्बल- - कायर साधक अन्त में घोर क्लेश पाते हैं । 214 अज्ञ मरियल बैल तत्थ मंदा विसीयंति, उज्जाणंसि व दुब्बला ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1052] .
- सूत्रकृतांग - 18220 अज्ञानी साधक उच्च संयममार्ग पर प्रयाण करने में वैसे ही (मनोदुर्बल) दुर्बल होकर बैठ जाते हैं जैसे ऊँची चढाई के मार्ग में मरियल
बैल दुर्बल होकर बैठ जाते हैं। - 215 अज्ञानी-साधक-बूढ़ा बैल
तत्थ मंदा विसीयंति उज्जाणंसि जरग्गवा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 1052]
- सूत्रकृतांग 13221 अज्ञानी साधक संकटकाल में उसीप्रकार खेदखिन्न हो जाते हैं जिसप्रकार बूढ़े बैल चढ़ई के मार्ग में । 216 स्वप्रतिष्ठा से बचो 3 णो विय पृयण पत्थए सिया ।
. अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 110