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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 772] - आवश्यक नियुक्ति 24075 सूर्य आदि का द्रव्य प्रकाश परिमित क्षेत्र को ही प्रकाशित करता है, किन्तु ज्ञान का प्रकाश तो समस्त लोकालोक को प्रकाशित करता है । 196 धर्म का लक्षण दुर्गति प्रसृतान् जन्तून् यस्माद्धारयते पुनः । धत्ते चैतान् शुभे स्थाने, तस्माद्धर्म इति स्मृतः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पू 773] एवं [भाग-4 पृ. 2665] | - आवश्यकमलयगिरि द्वितीय खण्ड जो दुर्गति (पतन के गड्ढे) में पड़ते हुए प्राणियों - को बचाता है और सद्गति (उन्नति के स्थान) में पहुंचाता है, वह 'धर्म' कहलाता 197 अध्यात्म-स्नान उदगस्स फासेण सिया य सिद्धि सिज्झंसु पाणा बहवे दगंसि । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 797] - सूत्रकृतांग - 14 यदि जल स्पर्श (जलस्नान) से ही सिद्धि प्राप्त हो, तो पानी में रहनेवाले अनेक जीव कभी के मोक्ष प्राप्त कर लेते ? 198 हिंसा पाणाणि चेवं विणिहंति मंदा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 797] - सूत्रकृतांग IMAG मन्दबुद्धिवाले व्यक्ति प्राणियों की हिंसा करते हैं। 199 अज्ञानी आसुरियं दिसं बाला, गच्छंति अवसातमं । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 106
SR No.002317
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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