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191 मृषा-वर्जन मुसावायं विवज्जेज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 652]
- सूत्रकृतांग 18/419 झूठ को छेड़ो। 192 अस्तेय-त्याग अदिण्णादाणाइ वोसिरे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग-2 पृ. 652]
- सूत्रकृतांग 1/3/419 चोरी का त्याग करो। 193 सुव्रती सुव्बते समिते चरे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 652]
- सूत्रकृतांग 13/409 सुव्रती समितियों का परिपालन करता हुआ विचरण करें । 194 शास्त्र
हस्तस्पर्श समं शास्त्र तत एव कथञ्चन । अत्र तन्निश्चयोपि स्यात् तथा चन्द्रोपरागवत् ॥ __ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 671]
- योगबिन्द 316 एवं द्वारा 16 द्वा. 26 अन्धा मनुष्य जैसे हाथ से छूकर किसी वस्तु के सम्बन्ध में अनुमान करता है, उसीप्रकार शास्त्र के सहारे व्यक्ति आत्मा, कर्म आदि पदार्थों के विषय में निश्चय कर लेता है । जैसे चन्द्र को राहु का स्पर्श शास्त्रों से ही जाना जाता है। 195 ज्ञान-ज्योति
दव्वुज्जोउ जोओ पगासई परमियम्मि खित्तम्मि । भावुज्जोउ जोओ, लोगालोगं पगासेइ ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 105