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187 समय-बद्धV जेहिं काले परिक्कंतं, न पच्छा परितप्पए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 652]
- सूत्रकृतांग - 1/3/445 जो समय पर अपना कार्य कर लेते हैं, वे बाद में पछताते नहीं । 188 सर्व विजयी
जेहिं नारीण संजोगा, पूयणापिट्ठतो कता । . सव्वमेयं निरा किच्चा, ते ठिता सुसमाहिए ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 652]
- सूत्रकृतांग 13/447 जिन पुरुषों ने स्त्रियों के संसर्ग तथा काम-विभूषा से पीठ फेर ली हैं, वे साधक इन सभी विघ्नों को पराजित करके सुसमाधि में स्थित रहते
हैं।
189 पीछे पछताय होत क्या ?
अणागयमपस्सन्ता, पच्चुप्पन्नगवेसगा । ते पच्छा परितप्पन्ति, झीणे आउम्मि जोव्वणे ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 652]
- सूत्रकृतांग 1/3/4/14 जो व्यक्ति भविष्य में होनेवाले दु:खों की तरफ न देखकर केवल वर्तमान-सुख को ही खोजते हैं, वे आयु और यौवन-काल बीत जाने पर पश्चात्ताप करते हैं। 190 बंधन-मुक्त धीरा बंधणुम्मुक्का।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 652]
- सूत्रकृतांग 13/405 धैर्यशाली बंधन से उन्मुक्त होते हैं।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 104
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