________________
183 ब्रह्मचर्य वाउ व जालमच्चेति, पिया लोगंसि इथिओ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 641]
- सूत्रकृतांग 1458 जैसे पवन अग्नि-शिखा को पार कर जाता है, वैसे ही महान् त्यागी पराक्रमी पुरुष स्त्रियों के मोह को उल्लंघन कर जाते हैं । 184 स्त्रीवशी - अज्ञ इत्थीवसंगता बाला, जिण सासण परम्मुहा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 651]
- सूत्रकृतांग - 13/4N स्त्री के वशीभूत अज्ञानी जीव जिनशासन से विमुख हो जाते हैं । 185 अनार्य-लक्षण अज्झोववन्ना कामेहिं ।
पूयणा इव तरूणए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 651]
- सूत्रकृतांग - 18/443 पूतना पिशाचिनी - डकिनी जैसे छोटे बच्चों पर आसक्त रहती है वैसे ही अज्ञानी-अनार्य काम-भोगों में अत्यधिक आसक्त रहते हैं । 186 नारी नेह दुस्तर
जहा नदी वेयरणी, दुत्तरा इह संमता । एवं लोगंसि नारीओ, दुत्तरा अमतीमता ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 652]
- सूत्रकृतांग - 1306 जिसप्रकार सर्व नदियों में वैतरणी नदी दुस्तर मानी गई है, उसीप्रकार इस लोक में कामिनियाँ अविवेकी साधक पुरुष के लिए दुस्तर मानी गई
हैं।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 103