________________
प्रलोभन को साधु सूअर को फंसानेवाले चावल के दाने के समान समझे। 179 मोहग्रस्त - मूर्खात्मा बद्धे य विसयपासेहिं मोहमागच्छती पुणो मंदे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 629]
- सूत्रकृतांग - 1/4MBI विषय-पाशों से बँधी हुई मूर्खात्मा बार-बार मोहग्रस्त होती है । 180 स्त्री-संसर्ग त्याग 1 एवित्थियाहिं अणगारा । संवासेण णासमुवयंति ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 629] - सूत्रकृतांग 1/
427 स्त्रियों के संसर्ग से अणगार पुरुष भी शीघ्र ही नष्ट (संयमभ्रष्ट) हो जाते हैं। 181 अग्नि बिन जलती काया पुत्रश्च मूों विधवा च कन्या, शठं मित्रं चपलं कलत्रम् । विलासकालेऽपि दरिद्रता च विनाग्निना पञ्च दहन्ति देहम् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 636]
- नग्गय. 31 मूर्ख पुत्र, विधवा कन्या, धूर्त मित्र, चञ्चल स्त्री और भोग-विलास के समय में दरिद्रता ये पाँचों चीजें बिना आग के शरीर को जलाती है । 182 ब्रह्मचर्य-गरिमा - इथिओ जे ण सेवन्ति आदि मोक्खा हु ते जणा। .
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 641]
- सूत्रकृतांग 1450 जो पुरुष स्त्रियों का सेवन नहीं करते, वे सर्वप्रथम मोक्षगामी अर्थात् मोक्ष पहुंचने में सबसे अग्रसर होते हैं ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 102