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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 628]
- सूत्रकृतांग 1/44/24 स्त्रियाँ मन से कुछ और सोचती हैं, वाणी से कुछ और बोलती हैं और कर्म से कुछ और ही करती हैं । इसलिए स्त्रियों को बहुत मायावाली जानकर उन पर विश्वास न करें । 175 मायाविनी नारी बहुमायाओ इथिओ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 628] - सूत्रकृतांग - 1/
4 24 स्त्रियाँ बहुत मायाविनी होती हैं । 176 स्त्री-संसर्ग जतुकुंभे जहा उवज्जोती संवासे विदु विसीएज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 629]
- सूत्रकृतांग 1/44/26 . जैसे लाख से निर्मित घड़ा आग से पिघल जाता है, वैसे ही
बुद्धिमान् पुरुष भी स्त्री-संसर्ग से स्खलित हो जाते हैं। 177 दोहरी मूर्खता
बालस्स मंदयं बितियंजं च कडं अवणाजई भुज्जो। दुगुणं करेइ से पावं, पूयण कामए विसण्णेसी॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 629]
- सूत्रकृतांग 1/44/29 मूर्ख साधक की दूसरी मूर्खता यह है कि वह बार-बार किए हुए पापकर्मों को नहीं किया' कहता है । अत: वह दुगुना पाप करता है । वह जगत् में अपनी पूजा चाहता है, किन्तु असंयम की इच्छा करता है। 178 प्रलोभन णीवारमेयबुज्झज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 629]
- सूत्रकृतांग 1/4M/BI अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 101