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________________ - सूत्रकृतांग 1/Anml ब्रह्मचारी, स्त्री-संसर्ग को विष लिप्त कंटक के समान समझकर उससे बचता रहे। 170 स्त्री के साथ विहार निषेध - णो विहरे सहणमित्थीसु - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 626] - सूत्रकृतांग 1/4An2 स्त्रियों के साथ विहार मत करो। 171 कुशील-वचन - वाया वीरियं कुसीलाणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 627] - सूत्रकृतांग - 1/ 4a7 सच है कुशीलों के वचन में ही शक्ति होती है (कर्म में नहीं)। 172 भोगासक्त-प्राणी / गिद्धा सत्ता कामेहि। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 627] - सूत्रकृतांग 1/4mM4 प्राणी काम-भोगों में आसक्त हैं । 173 स्त्री-परिचय-निषिद्ध अविधूयराहिं सुण्हाहि धातीहिं अदुवदासीहिं। . महतीहिं वा कुमारीहिं संथवं से णेव कुज्जा अणगारे ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 627] - सूत्रकृतांग 1/ 43 चाहे पुत्री हो, पुत्रवधु हो, धाय हो या दासी हो, विवाहित हो या कुमारी हो - श्रमण इन सब में किसी के भी साथ सम्पर्क-परिचय नहीं करें। 174 माया महाठगिनी हम जानी अन्नं मणेण चिंतेति अन्नं वायाइ कम्मुणा अन् । तम्हा ण सद्दहे भिक्खू, बहुमायाओ इथिओणच्चा ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 100
SR No.002317
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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