________________
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 624]
- सूत्रकृतांग नियुक्ति - 52 जो व्यक्ति धर्म में दृढ निष्ठा रखता है, वस्तुत: वही बलवान है, वही शूरवीर है । जो धर्म में उत्साहहीन है, वह वीर एवं बलवान होते हुए भी न वीर है; न बलवान है। 166 इन्द्रिय बलवत्ता
बलवानिन्द्रयग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ।। (पंडितोप्यऽत्र मुह्यति)
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 625]
- मनुस्मृति 2/215 इन्द्रिय समूह बड़ा बलवान होता है, वह अवसर आने पर विद्वान् को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेता है । 167 एकासन एकान्त निषेध मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत् ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 625]
- मनुस्मृति 2/215 पंडितजन को चाहिए कि माता, बहन तथा कन्या के साथ भी एकान्त में एक आसन पर न बैठे। 168 रस-लोलुप सीहं जहा च कुणिमेणं निब्भय मेग चरं पासेणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 626]
- सूत्रकृतांग 1/44/8 निर्भय अकेला विचरनेवाला सिंह भी मांस के लोभ से जाल में फँस जाता है (वैसे ही आसक्तिवश मनुष्य भी)। 169 विष-कण्टक तम्हा उ वज्जए इत्थी, विसलित्तं च कंटगं णच्चा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 626]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 99