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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 618]
- गच्छाचारपयन्ना सटीक - 2 अधि. जल की गहराई में मत्स्य के पैर, आकाश में पक्षियों के पैरों की पंक्ति और महिलाओं का अन्तर्हृदय - ये तीनों इस संसारमें दिखाई नहीं देते। 163 देव के लिए भी असंभव
अश्वप्लुतं माधवर्जितं च, स्त्रीणां चरित्रं भवितव्यता च । अवर्षणञ्चाप्यतिवर्षणं च, देवो न जानाति कुतो मनुष्यः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 618]
- गच्छाचारपयन्ना सटीक - 2 अधि. अश्व का उछलना, मधुमास में मेघों की गर्जना, स्त्रियों का चरित्र, भवितव्यता (होनहार) और अतिवृष्टि-अनावृष्टि-इतनी बातें देव भी नहीं जानते तो फिर मनुष्यों की बात ही क्या ? 164 अदृढ़ मन
यदि स्थिरा भवेत् विद्युत्, तिष्ठन्ति यदि वायवः । दैवात्तथापि नारीणां, न स्थेम्ना स्थीयते मनः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 618]
- गच्छाचारपयन्ना सटीक 2 अधि. कदाचित् विद्युत् स्थिर हो जाय और संयोग से वायु भी ठहर जाय; किन्तु स्त्रियों का मन प्राय: दृढ़ नहीं रहता । 165 धर्मवीर
धम्मम्मि जो दढमइ, सो सूरो सति ओ य वीरो य । णहु धम्मणिरूस्साहो, पुरिसो सूरो सुवलिओ य ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 98