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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 616]
- आचारांग - 1/5/4064 स्त्रीसंग में रत व्यक्तियों को कहीं यहीं पहले संकट उठने पड़ते हैं और बाद में स्पर्श-सुख प्राप्त होता है तो कहीं पहले स्पर्श-सुख और बाद में संकट सहने पड़ते हैं। 154 वासनोत्पीड़ित निर्बलाहारी उब्बाधिज्जमाणे गामधम्मेहिं अविनिब्बलासए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 616]
- आचारांग 1/5/4064 विषय-वासना से पीड़ित होने पर साधक निर्बल-हल्का भोजन करें। 155 उणोदरिका तप / अवि ओमोदरियं कुज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 616]
- आचारांग - 1/5/4064 भूख की अपेक्षा कम खाए। 156 कायोत्सर्ग अवि उड्ढे ठाणं ठाएज्जा।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 616]
- आचारांग - 1/5/4064 उर्ध्वस्थान पर खड़े रहकर कायोत्सर्ग करें । 157 अनशन अवि आहारं वोच्छिदेज्जा।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 616]
- आचारांग - 1/5/4/064 काम-भोगों से पीड़ित होने पर सर्वथा आहार का परित्याग करें।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2.96
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