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________________ 149 अन्तरात्म-तृप्ति सरित्सहस्र दुष्पूर समुद्रोदर सोदरः । तृप्तिमानेन्द्रियग्रामो, भव तृप्तोऽन्तरात्मना । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 597] - ज्ञानसार 73 हजारों नदियों से समुद्र दुष्पूर होता है । इन्द्रियाँ भी तृप्त नहीं होती है । अत: अन्तरात्मा से ही तृप्त बन । 150 प्रमाणभूत अन्तर तुल्लेवि इंदियत्थे, एगो सज्जइ विरज्जइ एगो । अब्भत्थं तु पमाणं, न इंदियत्था जिणावेंति ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 598] - व्यवहारभाष्य - 2/54 इन्द्रियों के विषय समान होते हुए भी एक उनमें आसक्त होता है, • और दूसरा विरक्त । जिनेश्वरदेव ने बताया है कि इस सम्बन्ध में व्यक्ति का अन्तर् हृदय ही प्रमाणभूत है, इन्द्रियों के विषय नहीं । 151 नारी पंक - ___पंकभूयाउ इथिओ। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 615] - उत्तराध्ययन 29 स्त्रियाँ कीचड़ के समान होती हैं । 152 आत्मान्वेषक चरेज्ज अत्तगवेसए । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 615] - उत्तराध्ययन 209 आत्मस्वरूप की खोज में विचरण करें । 153 स्त्री संसर्ग-दुःख पुव्वंदण्डा पच्छा फासा, पुव्वं फासा पच्छा दंडा । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 95
SR No.002317
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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