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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 542] - प्रश्न व्याकरण 2/8/26 जो असंविभागी है- प्राप्त सामग्री का ठीक तरह वितरण नहीं करता है, असंग्रह चि है - साथियों के लिए समय पर उचित सामग्री का संग्रह कर रखने में रूचि नहीं रखता है, अप्रमाणभोजी है - मर्यादा से अधिक भोजन करनेवाला 'पेटू' है, वह अस्तेयव्रत की सम्यक् आराधना नहीं कर सकता। 131. अपरिग्रह अपरिग्गह संवुडेणं लोगम्मि विहरियव्वं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग | पृ. 542] प्रश्नव्याकरण 2/8/26 अपने को अपरिग्रह भावना से संवृत्त कर लोक में विचरण करना चाहिए। 132. संविभागी कौन ? संविभाग सीले संगहो वग्गह कुसले, सेतारिसे आराहते वयमिणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 543] - प्रश्नव्याकरण 2/8/26 जो संविभागशील है - प्राप्त सामग्री का ठीक तरह वितरण करता है, संग्रह और उपग्रह में कुशल है – साथियों के लिए यथावसर भोजनादि सामग्री जुटाने में दक्ष है, वही अस्तेयव्रत की सम्यक् आराधना कर सकता . है। 133. चल, अकेला ! - एगे चरेज्ज धम्मं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग | पृ. 544] - प्रश्न व्याकरण 2/8/26 भले ही कोई साथ न दे, अकेले ही सद्धर्म का आचरण करना चाहिए। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/91
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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