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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 533] - प्रश्न व्याकरण 1/3/12 जो पराये द्रव्यों-पदार्थों से विरत नहीं हुए हैं अर्थात् जिन्होंने चौर्य कर्म का परित्याग नहीं किया हैं वे अत्यन्त और विपुल सैकड़ों दु:खों की आग में जलते रहते हैं। 127. अदत्तभोजी अणणुण्ण विय पाण भोयण भोई.......... से णिग्गंथे अदिण्णं भुंजेज्जा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग | पृ. 541] -- आचारांग 2/3/15 जो गुरुजनों की अनुमति के बिना प्रिय पदार्थ का भोजन करता है, वह अदत्तभोजी है; अर्थात् एक प्रकार से चोरी का अन्न खाता है । 128. अदत्त त्याग अणुन वियगेण्हियव्वं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 542] . - प्रश्न व्याकरण 2/8/26 दूसरे की कोई भी चीज हो, आज्ञा लेकर ग्रहण करनी चाहिए। 129. अस्तेय - अनाराधक सया अप्पमाण भोती सततं अणुबद्धवेरेय तिव्वरोसी, से तारिसए नाराहए वयमिणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 542] - प्रश्न व्याकरण 2/8/26 सदा मर्यादा से अधिक भोजन करनेवाला, वैरानुबंधी वैर रखनेवाला और सदा रोष रखनेवाला व्यक्ति अस्तेयव्रत का आराधक नहीं होता । 130. असंविभागी कौन ? असंविभागी, असंगहरूती.......अप्पमाण भोई.......सेतारिसए नाराहए वयमिणं । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/90
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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