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________________ 93. धर्म-पात्रता अणुसासणं पुढो पाणे । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 421] - सूत्रकृतांग 1/15/11 एक ही धर्मतत्त्व को प्रत्येक प्राणी अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार पृथक्-पृथक रूप में ग्रहण करता है। 94. सत्योपदेश सच्चे तत्थ करे हु वक्कम । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 421] - सूत्रकृतांग 1/2/3/14 सत्य हो, उसी में पराक्रम करो। 95. स्याद्वाद का सिक्का आदीपमा व्योम सम स्वभावं । स्याद्वाद मुद्रानति भेदिवस्तु ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 423] - अन्ययोग व्यवच्छेद द्वात्रिशिका - 5 स्यावाद का सिक्का संपूर्ण संसार में चलता है । छोटे से दीपक से लेकर व्यापक व्योम (आकाश) पर्यन्त सभी वस्तुएँ स्यावाद-अनेकान्त की मुद्रा से अङ्कित है। 96. स्याद्वाद भागे सिंहो नरो भागे, योऽर्थो भाग द्वयात्मकः । तम भागं विभागेन, नरसिंहः प्रचक्षते ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 425] . - शास्त्रवार्ता समुच्चय नृसिंहावतार शरीर का एक भाग सिंह के समान है और दूसरा भाग पुरुष के समान है । परस्पर दो विरुद्ध आकृतियों के धारण करने से यद्यपि वह भाग रहित है; फिर भी विभाग करके लोग उसे "नरसिंह" कहते हैं। ( अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/80
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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