SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 89. धर्मकथा चरण पडिवत्ति हेडं, धम्मकहा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 356] - ओघनियुक्ति भाष्य 7 आचार रूप सदगुणों की प्राप्ति के लिए धर्मकथा कही जाती है । 90. पर-ब्रह्म अगम्य अतीन्द्रियं परं ब्रह्म, विशुद्धानुभवं विना । शास्त्र युक्ति शतेनापि, नगम्यं यद् बुधाः जगुः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 392] - ज्ञानसार 26/3 जो परब्रह्म है वह अतीन्द्रिय है, परन्तु विशुद्ध अनुभव के बिना सैकड़ों शास्त्र-युक्तियों से भी उसे नहीं जाना जाता, ऐसा पण्डितजन कहते हैं। 91. शास्त्र:मात्र दिग्दर्शक व्यापारः सर्वशास्त्राणां दिक्प्रदर्शनमेव हि । पारं तु प्रापयत्येकोऽनुभवो भववारिधेः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग | पृ. 392) - ज्ञानसार 26/2 वस्तुत: सर्व शास्त्रों का उद्यम दिग्दर्शन कराने का ही है, लेकिन सिर्फ एक अनुभव ही संसार समुद्र से पार लगाता है। 92. शास्त्रास्वादी विरले केषां न कल्पनादी, शास्त्र क्षीराऽवगाहिनी । विरलातद्रसास्वाद विदोऽनुभव जिह्वया ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 393] - ज्ञानसार 26/5 लोग शास्त्र रूपी खीर अपनी-अपनी कल्पना रूपी कड़छी से हिलाते हैं, परन्तु अनुभवरूपी जीभ से उसका स्वाद तो विरले लोग ही लेते हैं । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/79
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy