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85. कल्याण-कामना
के कल्लाणं नेच्छइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 353]
- बृहत्कल्प भाष्य 247 संसार में कौन ऐसा है, जो अपना कल्याण न चाहता हो । 86. तेजस्वी वचन
गुण सुट्ठियरस वयणं, घयपरिसित्तुव्व पावओ भाइ । गुण हीणस्स न सोहइ, नेह विहूणो जह पईवो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 353]
- बृहत्कल्प भाष्य 245 गुणवान् व्यक्ति का वचन घृतसिंचित अग्नि की तरह तेजस्वी होता है, जबकि गुणहीन व्यक्ति का वचन स्नेहरहित (तेल शून्य) दीपक की तरह तेज और प्रकाश से शून्य होता है । 87. महाजन-मार्ग
जो उत्तमेहिं पहओ, मग्गो सो दुग्गमो न सेसाणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 353]
- बृहत्कल्प भाष्य 249 जो मार्ग महापुरुषों द्वारा चलकर प्रहत = सरल बना दिया गया है, वह अन्य सामान्य जनों के लिए दुर्गम नहीं होता । 88. दृष्टि - दर्पण
दविए दंसण सुद्धा, दंसण सुद्धस्स चरणं तु ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 356]
- ओघनियुक्ति भाष्य 7 द्रव्यानुयोग (तत्त्वज्ञान) से दर्शन [दृष्टिी शुद्ध होता है और दर्शन शुद्धि होने पर चारित्र की प्राप्ति होती है ।
: अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/78