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________________ 81. कर्म विपाक अभिनूम कडेहिं मुच्छिए, तिव्वं से कम्मेहिं किच्चती । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 332] - सूत्रकृतांग 1/2/1/7 माया आदि प्रच्छन्न दाम्भिक कृत्यों में आसक्त व्यक्ति अन्त में कर्मों द्वारा तीव्र क्लेश पाता है। 82. अनुशासन अणुसासण मेव पक्कमे । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 332] - सूत्रकृतांग 1/2/1/11 अनुशासन के अनुरूप संयममार्ग में ही पराक्रम करो । 83. मन्दबुद्धि उपदेश-पात्र नहीं आमे घड़े निहित्तं, जहा जलं तं घडं विणासेइ । इअ सिद्धंत रहस्सं, अप्पाहारं विणासेइ ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 351] - निशीथ भाष्य 6243 मिट्टी के कच्चे घड़े में रखा हुआ जल जिसप्रकार उस घड़े को ही नष्ट कर डालता है, वैसे ही मन्दबुद्धि को दिया हुआ गंभीर शास्त्र-ज्ञान, उसके विनाश के लिए ही होता है। 84. यथा आकृति तथा गुण यत्राकृतिस्तत्र गुणाः वसन्ति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 352] - द्वात्रिंशत् द्वात्रिंशिका सटीक 1 मनुष्य की जैसी आकृति है तदनुरूप उसमें गुण रहते हैं। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/77
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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