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97. पदार्थ - स्वरूप
घटमौलि सुवर्णार्थी नाशोत्पाद स्थितिष्वयम् । शोकप्रमोद माध्यस्थं जनोयाति सहेतुकम् ॥ पयोव्रतो न दध्यति न पयोऽति दधिव्रतः । अगोरस व्रतो नोभे तस्माद् वस्तु त्रयात्मकम् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 425]
- आप्तमीमांसा 59-60 घड़े, मुकुट और सोने को चाहने वाले पुरुष घड़े के नाश, मुकुट के उत्पाद और सोने की स्थिति में क्रम से शोक, हर्ष और माध्यस्थ भाव रखते हैं तथा दूध का व्रत रखनेवाला पुरुष दही नहीं खाता, दही का नियम लेनेवाला पुरुष दूध नहीं पीता और गोरस का व्रत लेनेवाला पुरुष दूध और दही दोनों नहीं खाता; इसलिए संसार की प्रत्येक वस्तु उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप है। 98. वस्तु-तत्त्व प्ररूपणा
दव्वं खित्तं कालं, भाव पज्जाय देससंजोगे । भेदं च पमुच्च समा, भावाणं पणवण पज्जा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग | पृ. 438]
- सन्मतितर्क 3/60 वस्तु तत्त्व की प्ररूपणा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव,' पर्याय, देश, संयोग और भेद के आधार पर ही सम्यक होती है।
१. पदार्थ की मूल जाति, २. स्थिति क्षेत्र, ३. योग्य समय, ४. पदार्थ की मूल शक्ति, ५. शक्तियों के विभिन्न परिणमन अर्थात् कार्य, ६. व्यावहारिक स्थान, ७. आस-पास की परिस्थिति, ८. प्रकार] । 99. योग्य-प्रवक्ता
ण हु सासण भत्ती मे-त्तएण सिद्धन्त जाणओ होइ । ण वि जाणओ विणियमा, पणवणा निच्छिओ णाम ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/81
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