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________________ भगवती 1319126 जिसके अन्तर में माया का अंश है, वही विकुर्वणा [ नाना रूपों का प्रदर्शन] करता है | अमायी [सरलात्मावाला ] नहीं करता । 42. सन्त-हृदय सारद सलिल इव सुद्धहियया विहग इव विप्यमुक्का वसुंधरा इव सव्व फास विसहा । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 278] सूत्रकृतांग 2/2/38 मुनिजनों का हृदय शरदकालीन नदी के जल की तरह निर्मल होता है । वे पक्षी की तरह बन्धनों से मुक्त और पृथ्वी की तरह समस्त सुखदुःखों को समभाव से सहन करनेवाले होते हैं । 43. श्रमण-धर्म खंती य मद्दवऽज्जव, मुत्ती तव संजमे य बोधव्वे | सच्चं सोयं आकिंचणं च, बंभं च जइ धम्मो ॥ - - क्षमा, मार्दव [मृदुता], सरलता, कर्मबन्ध से मुक्त होने की भावना, तपश्चरण, संयम, सत्य-भाषण, आभ्यन्तर शुद्धि, अकिञ्चन भाव और ब्रह्मचर्य का पालन ये दस श्रमण धर्म है । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 279] तित्थोगाली पइण्णय 1207 44. संयमी आत्मा इच्छा कामं च लोभं च संजओ परिवज्जए । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 280 ] उत्तराध्ययन 35/3 इच्छा, काम-वासना और लोभ को छोड़ दे । - - अभिधान राजेन्द्र कोष में सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1 /66
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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