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________________ सुनने की इच्छा करना (शुश्रूषा), सुनकर तत्त्व को ग्रहण करना (श्रवण), ग्रहण किए हुए तत्त्व को हृदय में धारण करना (ग्रहण), फिर उस पर विचार करना (धारणा), विचार करने के पश्चात् उसका सम्यक् प्रकार से निश्चय करना (ऊहापोह), निश्चय द्वारा वस्तु को समझना (अर्थविज्ञान) और अन्त में उस वस्तु के तत्त्व की जानकारी करना (तत्त्वज्ञान)- ये बुद्धि के आठ गुण हैं। 39. नरक-द्वार चत्वारो नरक द्वाराः, प्रथमं रात्रि भोजनम् । परस्त्री सङ्गमश्चैव, सन्धानानन्त कायिके ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 264] - धर्मसंग्रह 2 अधि० पृ. 75 एवं मनुस्मृति नरक गमन के चार द्वार हैं - १. रात्रिभोजन, २. परस्त्री गमन, ३. अचार भक्षण और ४. अनन्तकाय भक्षण । 40. क्रिया-बंध अहात्तं रियंरीयमाणस्सइरियावहिया किरिया कज्जति। उस्सुत्तं रीयं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जति ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 272] - भगवती 7/1/16 [2] सिद्धान्तानुकूल प्रवृत्ति करनेवाला साधक ऐपिथिक [अल्प-कालिका क्रिया का बन्ध करता है। सिद्धान्त के प्रतिकूल प्रवृत्ति करनेवाला सांपरायिक चिरकालिक] क्रिया का बन्ध करता है । 41. नाना प्रदर्शन मायी विउव्वति, नो अमायी विउव्वति । __ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 274] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/65
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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