________________
औचित्यपूर्ण - विधिवत् चारित्र्य सेवी पुरुष का शास्त्रानुगामी तत्त्व-चिन्तन, मैत्री, करुणा, प्रमोद तथा माध्यस्थादि उत्तम भावनाओं का जीवन में स्वीकार करना ज्ञानीजनों द्वारा 'अध्यात्म' कहा जाता है। 35. वचनगुप्त - आत्मसंवृत्त
वइगुत्ते अज्झप्प संवुडे परिवज्जए सदा पावं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 229]
- आचारांग 1/5/4/165 मौन तथा आत्मलीन होकर पापकर्म से दूर रहे । 36. ज्ञान और कर्म
आहेसु विज्जा चरणं पमोक्खं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 240]
एवं [भाग 3 पृ. 556]
- सूत्रकृतांग 1/12/11 ज्ञान और कर्म [विद्या एवं चरण] से ही मोक्ष प्राप्त होता है । 37. अष्ट पूजा पुष्प
अहिंसा सत्य मस्तेयं, ब्रह्मचर्यमसङ्गता । गुरुभक्ति स्तपोज्ञानं, सत्पुष्पाणि प्रचक्षते ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 246]
- हारिभद्रीय अष्टक 3 अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, नि:संगता, गुरु-भक्ति, तप और ज्ञान - ये पूजा के आठ फूल कहलाते हैं । 38. बुद्धि-गुण
शुश्रूषा श्रवणं चैव, ग्रहणं धारणं तथा । अहोऽपोहोऽर्थ विज्ञानं, तत्त्व ज्ञानं च धी गुणाः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 247] - अभिधान चिंतामणि 2/210 -211
एवं कामन्दकीय नीतिसार 4/21 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/64
-