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________________ 223. लोकधर्म विरुद्ध त्याग लोकः खल्वाधारः सर्वेषां ब्रह्मचारिणां यस्मात् । तस्माल्लोक विरुद्धं, धर्मविरुद्धं च संत्याज्यम् ॥ ___ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 867] एवं [भाग 4 पृ. 2682] - प्रशमरति प्रकरण 131 - धर्मबिन्दु 1/46 धर्म-मार्ग पर चलने वाले सभी का आधार लोक है । इसलिए जो लोक-विरुद्ध और धर्म-विरुद्ध हो, उसका त्याग करें। 224. अहिंसा, क्षेमंकरी तत्थ पढमं अहिंसा, तस थावर सव्व भूय खेमकरी । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 872] - प्रश्न व्याकरण 2/6/21 .. अहिंसा - सत्यादि पाँचों में प्रथम अहिंसा त्रस और स्थावर (चर-अचर) सब प्राणियों का कुशल क्षेम करनेवाली है। 225. हिंसा - अर्थ प्रमत्त योगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 872] - तत्त्वार्थ सूत्र 7/8 प्रमत्त योग (प्रमाद पूर्वक) के द्वारा दूसरों के प्राणों का नाश करना हिंसा है। 226. अहिंसा अहिंसा जा सा सदेव मणुया सुरस्स लोगस्स भवति दीवो ताणं सरणं गती पइट्ठा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 872] - प्रश्न व्याकरण 216/21 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/115
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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