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190. कैसा सत्य ?
अलिअंन भासि अव्वं,अस्थि हुसच्चं पिजंन वत्तव्वं । सच्चं पि तं न सच्चं, जं पर पीडाकरं वयणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 773]
- धर्मसंग्रह 2 अधिकार पृ. 59 झूठ नहीं बोलना चाहिए। ऐसा सत्य भी नहीं बोलना चाहिए जो परपीडाकारक हो और वह सत्य, सत्य भी नहीं है । 191. असत्य भाषण
दुग्गइ - विणिवाय विवड्ढणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 777
एवं 784]
- प्रश्न व्याकरण 1/2/5 असत्य भाषण से अध:पतन होता है । 192. असत्य स्वरूप
अलियंणियडिसाति जोयबहुलं नीयजण निसेवियं । निस्संसं अपच्चयकारकं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 777-784]
- प्रश्न व्याकरण 1/2/5 यह झूठ धूर्तता और अविश्वास की प्रचुरतावाला है । नीच लोग ही इसका आचरण करते हैं । यह नृशंस - क्रूरता से परिपूर्ण है और विश्वसनीयता का विघातक है। 193. लोभी - प्रवृत्ति
निक्खेवे अवहरंति, परस्स अत्थम्मि गढियगिद्धा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग | पृ. 778]
- प्रश्न व्याकरण 1/216 पराये धन में अत्यन्त आसक्त मृषावादी लोभी धरोहर को हड़प जाते हैं।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/106
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