SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 194. भवितव्यता नहिभवति यन्न भाव्यं, भवतिचभाव्यं विनाऽपि यत्नेन । करतलगतमपि नश्यंति, यस्य तु भवितव्यता नास्ति ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 780] - प्रश्न व्याकरण सटीक 2 आश्रवद्वार यदि भवितव्यता नहीं है तो वह नहीं होता और जो होनहार है वह बिना प्रयास के भी हो जाता है। जिसकी भवितव्यता नहीं है वह हथेली में रहा हुआ भी चला जाता है। 195. सर्वव्यापी ईश्वर जले विष्णुः, स्थले विष्णुः विष्णुपर्वत मस्तके । ज्वाल माला कुले विष्णुः, सर्वं विष्णुमयं जगत् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 780] - सुभाषित श्लोक संग्रह 406 . जल में विष्णु हैं । स्थल में विष्णु हैं । पर्वत के शिखर में विष्णु हैं। आग में, हवा में विष्णु हैं और हरी वनस्पति में भी विष्णु व्याप्त हैं । अत: यह सम्पूर्ण जगत् विष्णुमय हैं। 196. परमात्मा एक एव हि भूतात्मा, भूते भूते व्यवस्थितः । एकथा बहुधा चैव, दृश्यते जल चन्द्रवत् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 780] - ब्रह्मबिन्दूपनिषद 12 एक परमात्मा ही प्रत्येक जीव में स्थित है, जो जल में चंद्रमा की तरह एक या अनेक रूपों में दिखाई देता है । 197. विराट् ब्रह्म ! पुरुष एवेदं सर्व यद् भूतं यच्च भाव्यम् । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 780] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/107
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy