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________________ 186. लड़े सिपाही नाम सरदार का क्लिश्यन्ते केवलं स्थूलाः, सुधीस्तु फलमश्नुते । दन्ता दलन्ति कष्टेन, जिह्वया गिलति लीलया ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 762] . - कल्प सुबोधिका सटीक 7 क्षण स्थूल बुद्धिवाले केवल क्लेश पाते हैं और बुद्धिमान् तो फल पाते हैं। जैसे – दन्तपंक्ति तो मात्र चबाने का कार्य करती है, और स्वाद तो जीभ ही लेती है। 187. अलाभ - परिषह अज्जेवाहं न लब्भामि, अविलाभो सुए सिया । जो एवं पडि संचिक्खे, अलाभो तं न तज्जए ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 772] - उत्तराध्ययन 2133 मुझे आज आहार नहीं मिला है, तो संभवत: कल प्राप्त हो जाएगा। जो साधु आहार प्राप्त न होने पर इसप्रकार विचार करके दीनभाव नहीं लाता, उसे अलाभ परिषह नहीं सताता है । 188. उत्तमतप अलाभो मे परमं तपः । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 772] - पञ्चसंग्रह सटीक 4 द्वार - एवं आवश्यक बृहद्वृत्ति 4 अध्ययन अलाभ [किसी वस्तु का प्राप्त नहीं होना] मेरे लिए श्रेष्ठ तप है। 189. क्षुधा-परिषह लद्धे पिंडे अलद्धे वा, णाणुतप्पेज्ज संजए । ___ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 772] - उत्तराध्ययन 2/30 आहार मिले अथवा नहीं मिले तो भी बुद्धिमान् साधक खेद नहीं करे । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/105
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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